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साहिबा, आए घर काहे ना? ऐसे तो सताए ना
देखूँ तुझको, चैन आता है
साहिबा, नींदें-वींदें आएँ ना, रातें काटी जाएँ ना
तेरा ही ख़याल दिन-रैन आता है
साहिबा, समुंदर मेरी आँखों में रह गए
हम आते-आते, जानाँ, तेरी यादों में रह गए
ये पलकें गवाही हैं, हम रातों में रह गए
जो वादे किए सारे बस बातों में रह गए
बातों-बातों में ही, ख़्वाबों-ख़्वाबों में ही मेरे क़रीब है तू
तेरी तलब मुझको, तेरी तलब, जानाँ, हो तू कभी रू-ब-रू
शोर-शराबा जो सीने में है मेरे, कैसे बयाँ मैं करूँ?
हाल जो मेरा है, मैं किस को बताऊँ?
मेरे साहिबा, दिल ना किराए का, थोड़ा तो सँभालो ना
नाज़ुक है ये, टूट जाता है
साहिबा, नींदें-वींदें आएँ ना, रातें काटी जाएँ ना
तेरा ही ख़याल दिन-रैन आता है
कैसी भला शब होगी वो संग जो तेरे ढलती है?
दिल को कोई ख़्वाहिश नहीं, तेरी कमी खलती है
आराम ना अब आँखों को, ख़्वाब भी ना बदलती है
दिल को कोई ख़्वाहिश नहीं, तेरी कमी, जानाँ, खलती है
साहिबा, तू ही मेरा आईना, हाथों में भी मेरे, हाँ
तेरा ही नसीब आता है
साहिबा, नींदें-वींदें आएँ ना, रातें काटी जाएँ ना
तेरा ही ख़याल दिन-रैन आता है
साहिबा, नींदें-वींदें आएँ ना, रातें काटी जाएँ ना
तेरा ही ख़याल दिन-रैन आता है
Writer(s): Aditya Rikhari
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