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ना जाने दिन कैसे जीवन में आए हैं
ना जाने दिन कैसे जीवन में आए हैं
कि मुझ से तो बिछड़े खुद मेरे साए हैं
ना जाने दिन कैसे जीवन में आए हैं
क्या-क्या सोचा था, क्या थी उम्मीदें
जिसके लिए भी मैंने खो दी आँखों की ये नींदें
उसी से दुखों के तोहफ़े ये पाए हैं
ना जाने दिन कैसे जीवन में आए हैं
समझा सुख जिसको, छाया थी ग़म की
जैसे कहीं रेत पे चमके कुछ बूँदें शबनम की
ये धोखे नज़र के हमने भी खाए हैं
ना जाने दिन कैसे जीवन में आए हैं
Written by: R.D. Burman, Yogesh
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