Créditos

PERFORMING ARTISTS
Gulzar
Gulzar
Performer
Shreya Ghoshal
Shreya Ghoshal
Performer
COMPOSITION & LYRICS
Gulzar
Gulzar
Songwriter
Rabindranath Tagore
Rabindranath Tagore
Songwriter

Letras

एक देहाती सर पे गुड़ की भेली बाँधे
लंबे-चौड़े इक मैदाँ से गुज़र रहा था
गुड़ की ख़ुशबू सुन के भिन-भिन करती
एक छतरी सर पे मँडराती थी
धूप चढ़ी ओर सूरज की गर्मी पहुँची
तो गुड़ की भेली बहने लगी
मासूम देहाती हैराँ था
माथे से मीठे-मीठे क़तरे गिरते थे
और वो जीब से चाट रहा था
मैं देहाती, मेरे सर पे ये टैगोर की कविता भेली किसने रख दी
रहने दो, सिंगार को रहने दो
सामने चूल्हा जल रहा है, धुआँ आँखों में लग रहा है
जलन भी है, आनंद भी है
बस आते ही होंगे, जल्दी से संध्या पूजा हो जाए
जानती है वो क्या कहेंगे
जैसी हो वैसी ही आ जाओ
सिंगार को रहने दो
जैसी हो वैसी ही आ जाओ
सिंगार को रहने दो
बाल अगर बिखरे हैं
सीधी माँग नहीं निकली
बाँधे नहीं अँगिया के फीते
तो भी कोई बात नहीं
जैसी हो वैसी ही आ जाओ
सिंगार को रहने दो
ओस से भीगी मट्टी में पाँव अगर सन जाएँ तो
ओस से भीगी मट्टी में पाँव अगर सन जाएँ तो
घुँघरू गिर जाए पायल से
तो भी कोई बात नहीं
जैसी हो वैसी ही आ जाओ
सिंगार को रहने दो
आकाश पे बादल उमड़ रहे हैं, देखा क्या?
गूँजे नदी किनारे से सब उड़ने लगे हैं, देखा क्या?
बेकार जला कर रखा है सिंगार दीया
बेकार जला कर रखा है सिंगार दीया
हवा से काँप के बार-बार
बुझ जाता है सिंगार दिया
जैसी हो वैसी ही आ जाओ
सिंगार को रहने दो
किसको पता है
पलकों तले दीये का काजल लगा नहीं
नहीं बनी है परांदी तो क्या
गजरा नहीं बँधा, तो छोड़ो
जैसी हो वैसी ही आ जाओ
सिंगार को रहने दो
हो, सिंगार को रहने दो
रहने दो, सिंगार को रहने दो
Written by: Gulzar, Rabindranath Tagore
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