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बोलती तो होंठ हिलते, आवाज़ होती, अल्फ़ाज़ भी होते बोलती तो होंठ हिलते, आवाज़ होती, अल्फ़ाज़ भी होते शायद बात आगे चलती किसी अंजाम के मोड़ पर रुक जाती या मुड़ जाती मगर चुप की आवाज़ ना रुकती है, ना बुझती है अल्फ़ाज़ ख़त्म हो जाते हैं, ख़ामोशी ख़त्म नहीं होती वो चुप होने के बाद भी धड़कती रहती है और आसुओं में टपकती रहती है ना मानो तो टपकाओ और गिन के देख लो गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं सारी रैन पलक ना झपकी सारी रैन पलक ना झपकी सारी रैन पलक ना झपकी गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं जाने कहाँ से सावन लाई... जाने कहाँ से सावन लाई, कोरी रात को जल-थक कर गई हो, जाने कहाँ से सावन लाई, कोरी रात को जल-थक कर गई इक ही रात में भादों बीता रात-रात में बीता भादों सावन भादों पल-पल भर गईं गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं एक समंदर था आँखों में... एक समंदर था आँखों में, क़तरा-क़तरा प्यासा टपका हो, एक समंदर था आँखों में, क़तरा-क़तरा प्यासा टपका यादों के सारे मौसम थे सारे मौसम थे यादों के आँख से १२ मास आ टपका गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं सारी रैन पलक ना झपकी सारी रैन पलक ना झपकी बैरी एक पलक ना झपकी गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं गिन-गिन बूँदें अखियाँ छलकीं
Writer(s): Gulzar, Deepak Pandit Lyrics powered by www.musixmatch.com
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