Lirik

दुख-सुख की हर एक माला कुदरत ही पिरोती है ओ, दुख-सुख की हर एक माला कुदरत ही पिरोती है हाथों की लकीरों में ये जागती-सोती है दुख-सुख की हर एक माला कुदरत ही पिरोती है यादों का सफ़र ये करे गुज़री बहारों में कभी आने वाले कल पे हँसे, उड़ते नज़ारों में कभी एक हाथ में अँधियारा, एक हाथ में जोति है दुख-सुख की हर एक माला कुदरत ही पिरोती है सामना करे जो इसका, किसी में ये दम है कहाँ? इसका खिलौना बन के हम सब जीते हैं यहाँ जिस राह से हम गुज़रें, ये सामने होती है दुख-सुख की हर एक माला कुदरत ही पिरोती है आहों के जनाज़े दिल में, आँखों में चिताएँ ग़म की नींदें बन गई तिनका, चली वो हवाएँ ग़म की इंसान के अंदर भी आँधी कोई होती है दुख-सुख की हर एक माला कुदरत ही पिरोती है खुद को छुपाने वालों का पल-पल पीछा ये करे जहाँ भी हो, मिटते निशाँ, वहीं जा के पाँव ये धरे फिर दिल का हर एक घाव अश्कों से ये धोती है दुख-सुख की हर एक माला कुदरत ही पिरोती है हाथों की लकीरों में ये जागती-सोती है दुख-सुख की हर एक माला कुदरत ही पिरोती है
Writer(s): Rahul Dev Burman, Qateel Shifai Lyrics powered by www.musixmatch.com
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