歌詞

मेरी आदत, मेरा हिस्सा कट गया मेरे होने का वो क़िस्सा बँट गया नयी धूप की तलाश में रोज़ घर से निकलती धुँधली निगाहें मेरी, राह नहीं मिलती चुप हो गई ज़िंदगी गुम हो गई रोशनी राख बन उड़ रही ख़ामोशी सबकुछ काँच का है, टूटता कोई कब तक साथ है, ये किसको है पता मेरी रूह छिल सी गई है मैं कैसे ज़िंदा हूँ, चीखती है ख़ामोशी शोर कैसे मैं सुनूँ? चुप हो गई ज़िंदगी गुम हो गई रोशनी चुप हो गई ज़िंदगी राख बन उड़ रही ख़ामोशी राख बन उड़ रही ख़ामोशी
Writer(s): Prasoon Joshi, Michael Ian Mccleary Lyrics powered by www.musixmatch.com
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