가사
अंजाने हो तुम जो, बेगाने हो तुम जो
पहचाने लगते हो क्यूँ?
तुम गहरी नींदों में जब सोये-सोये हो
तो मुझमें जागते हो क्यूँ?
जब तुझको पाता है, दिल मुस्कुराता है
क्या तुझसे है वास्ता?
क्या तुझमें ढूँढू मैं? क्या तुझसे चाहूँ मैं?
क्या-क्या है तुझमें मेरा?
जानूँ ना मैं तुझमें मेरा हिस्सा है क्या?
पर अजनबी अपना मुझे तू लगा
जानूँ ना मैं तुझसे मेरा रिश्ता है क्या?
पर अजनबी अपना मुझे तू लगा
तुझसे तालुक जो नही कुछ मेरा
क्यूँ तू लगे है अपनों सा?
देखूँ जो तुझको एक नज़र जाए भर
मुझमें है मेरा जो खला
ज़िन्दगी में खुशी तेरे आने से है
वरना जीने में ग़म हर बहाने से है
है ये अलग बात है, हम मिले आज है
दिल तुझे जानता इक ज़माने से है
जानूँ ना मैं तुझमें मेरा हिस्सा है क्या?
पर अजनबी अपना मुझे तू लगा
जानूँ ना मैं तुझसे मेरा रिश्ता है क्या?
पर अजनबी अपना मुझे तू लगा
आँखों ने आँखों से कही दास्ताँ
तुमको बना के राज़ूदा
बाहों में जन्नत आ रही खुशनुमा
तुम जो हुए हो मेहरबाँ
जिस्म से जिस्म का यूँ उतारूफ़ हुआ
हो गए हम सनम, रूह तक आशना
आ इक ज़रा जो चले दो कदम साथ में
मिल गया है हमें ज़िन्दगी का पता
जानूँ ना मैं तुझमें मेरा हिस्सा है क्या?
पर अजनबी अपना मुझे तू लगा
जानूँ ना मैं तुझसे मेरा रिश्ता है क्या?
पर अजनबी अपना मुझे तू लगा
अंजाने हो तुम जो, बेगाने हो तुम जो
पहचाने लगते हो क्यूँ?
तुम गहरी नींदों में जब सोये-सोये हो
तो मुझमें जागते हो क्यूँ?
जब तुझको पाता है, दिल मुस्कुराता है
क्या तुझसे है वास्ता?
क्या तुझमें ढूँढू मैं? क्या तुझसे चाहूँ मैं?
क्या-क्या है तुझमें मेरा?
जानूँ ना मैं तुझमें मेरा हिस्सा है क्या?
पर अजनबी अपना मुझे तू लगा
जानूँ ना मैं तुझसे मेरा रिश्ता है क्या?
पर अजनबी अपना मुझे तू लगा
Writer(s): Shakeel Azmi, Chirantan Bhatt
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