가사
तेरा ज़िक्र, तेरी फ़िक्र, सब छोड़ दूँगा मैं
बस इतना बता दे मुझे
मुझ से ज़्यादा कौन चाहेगा तुझे?
क्यूँ गए तुम मुझे छोड़ के?
क्यूँ गए ऐसे रूठ के?
ऐसा ये सफ़र तेरे बिना
ज़िंदगी जैसे थम गई
कैसी ये जुदाई है मैंने पाई?
तू ही बता, मैं क्या करूँ?
मेरे महबूब, क़यामत होगी
आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी
मेरी नज़रें तो गिला करती हैं
तेरे दिल को भी सनम, तुझ से शिकायत होगी
मेरे महबूब...
जब मोहब्बत ही नहीं समझ पाए तुम
हमें क्या समझते
हमराज़ थे हम तेरे
फिर क्यूँ दिया फ़ासला?
मैं सिर्फ़ तेरा रहूँ
तेरा ही था फ़ैसला
तूने जो रुसवा किया
जीने का मक़सद है क्या?
कल तक मुक़म्मल जो था
बिखरा है कैसे जहाँ?
अब आ, देख ले ये हाल मेरा
खुदा ना करे कल ये हाल तेरा
तुझ से मिलने की दुआ करते हैं
अर्ज़ नज़रों से तेरी ख़िदमत में मेरी नफ़रत होगी
मेरे दिल का जो तूने हश्र किया
याद रखना, तू भी चाहत में कभी बेबस होगी
मेरे महबूब...
ख़ैर छोड़ो, अब हम क्यूँ उदास बैठें?
खोया तो तुम ने है एक सच्चे चाहने वाले को
Writer(s): Anand Bakshi, Kudalkar Laxmikant, Pyarelal Ramprasad Sharma
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