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तुम बिन जाऊँ कहाँ?
तुम बिन जाऊँ कहाँ?
कि दुनियाँ में आ के
कुछ ना फिर चाहा कभी तुम को चाह के
तुम बिन जाऊँ कहाँ?
कि दुनियाँ में आ के
कुछ ना फिर चाहा कभी तुम को चाह के
तुम बिन...
रह भी सकोगे तुम कैसे हो के मुझ से जुदा?
हट जाएँगी दीवारें सुन के मेरी सदा
आना होगा तुम्हें मेरे लिए, साथी मेरी, सूनी राह के
तुम बिन जाऊँ कहाँ?
कि दुनियाँ में आ के
कुछ ना फिर चाहा कभी तुम को चाह के
तुम बिन...
कितनी अकेली सी पहले थी यही दुनियाँ
तुमने नज़र जो मिलाई, बस गई दुनियाँ
दिल को मिली जो तुम्हारी लगन
दिए जल गए मेरी आह से
तुम बिन जाऊँ कहाँ?
तुम बिन जाऊँ कहाँ?
कि दुनियाँ में आ के
कुछ ना फिर चाहा कभी तुम को चाह के
तुम बिन...
Writer(s): Majrooh Sultanpuri, R.d. Burman
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