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घर से थे चले तो ये बात हो गई
घर से थे चले तो ये बात हो गई
ना जाने क्यूँ उनसे मुलाक़ात हो गई
नज़रें ऐसे वो टकरा गईं
कि हमें आशिक़ी आ गई, आ गई
कि हमें आशिक़ी आ गई
घर से थे चले तो ये बात हो गई
ना जाने क्यूँ उनसे मुलाक़ात हो गई
नज़रें ऐसे वो टकरा गईं
कि हमें आशिक़ी आ गई, आ गई
कि हमें आशिक़ी आ गई
यार की दिलकशी भा गई, भा गई
कि हमें आशिक़ी आ गई
बड़ी दीवानी सी रात थी, हुई घनी बरसात थी
हवाओं से उलझी वो ज़ुल्फ़ें उन्होंने थाम जो ली
तो ज़ुल्फ़ें ऐसे वो बिखरा गईं
कि हमें आशिक़ी आ गई, आ गई
कि हमें आशिक़ी आ गई
यार की दिलकशी भा गई, भा गई
कि हमें आशिक़ी आ गई
इश्क़ है सूफ़ी, मेरा इश्क़ मुक़म्मल
माँगें सनम को ही आँखें ये हर पल
यार मिला है, क्या क़रार मिला है
तेरा प्यार मिला तो हर मुश्किल हुई हल
कि हमें आशिक़ी आ गई
Writer(s): Sayeed Quadri, Mithoon
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