Слова

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना आदमी को भी गिर्या चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की दर ओ दीवार से टपके है बयाबाँ होना दर ओ दीवार से इशरत-ए-क़त्ल-गह-ए-अहल-ए-तमन्ना मत पूछ ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उर्यां होना ईद-ए-नज़्ज़ारा है कि मेरे क़त्ल के बा'द उस ने जफ़ा से तौबा हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशेमाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
Writer(s): Khalil Ahmed, Ghalib Lyrics powered by www.musixmatch.com
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