album cover
Samay
17
Hip-Hop/Rap
Samay was released on May 10, 2020 by Melo as a part of the album Samay - Single
album cover
Release DateMay 10, 2020
LabelMelo
Melodicness
Acousticness
Valence
Danceability
Energy
BPM

Music Video

Music Video

Credits

PERFORMING ARTISTS
Gravity
Gravity
Performer
ShvngDu
ShvngDu
Performer
Rahul Shahani
Rahul Shahani
Performer
COMPOSITION & LYRICS
Akshay Poojary
Akshay Poojary
Songwriter
PRODUCTION & ENGINEERING
ShvngDu
ShvngDu
Producer
Rahul Shahani
Rahul Shahani
Producer

Lyrics

[Verse 1]
पायदान पे खड़ा चल रही ये गाड़ी मेरी
हिलती गाड़ी जैसे लोरी मुझको ये सुला ही देती
ज़िंदगी ये रेल जो मिलते है वो जाते छूट
मन का रंग ही मैला जिसका उसको मैं लगता अछूत
समय का पहिया चलता जाए साथ ले चले वो
थमना चाहता हमसफर जो साथ रह सके तोह
पर मुस्कुराता चाहे जितनी भी उदासी आँखों में है आँसू कहता हूँ के है उबासी
काँटों की तरह ही घूमता हूं मैं आवारा
पर मध्यकाल मैं वहां मिलु जहाँ सहारा
तोह बजने दे अब वो घड़ी जो नींदों को उड़ादे
अब तोह मौत ही वो बिस्तर जो प्यार से सुला दे
कर पूरी मुरादें मेरा देवता ही है समय
घुमता हुआ ये अंकों का मिलन ये बारह राशि
क्या है होना कल का मेरा ना तू जाने ना मैं बाकी तोह है खेल वक्त का
समय का ना के शख्स का शाह का रुख ही रक्त से सजा बदलना तख्त राजा रंक बन गया
समय का डंक पड़ गया ज़हर ये घोल आत्मा में
शंख बज गया तोह होनी वाली जंग अब तोह डंका बज गया
[Verse 2]
समय भी क्या हराएगी इस मौत को अभी
खमा-खा समझ रहा था खौफ़ को कवि
जो कि लिख रहा है पंक्तिया आखरी इस अंत की
संगीत की तपस्या फिर भी ना है मैंने भंग की
[Verse 3]
खत्म हो चुका हूं काफी बारी खिची दिल पे आरी
हो चुके हैं टुकड़े काफी
[Verse 4]
पर फिर भी मुझपे तारे टिम-टिमा रहे
मुझको सारे ज़ख्म मेरे दिन गिना रहे
फिर भी मैं ना छोड़ता उम्मीद क्यूंकि डूबने के लिए जहाँ सागर वही पे तोह किनारे है
सुनी थी सी ज़िंदगी पर अब कई तराने हैं
मखमली लिबासो के है सपने पर ज़माने ने ना छोड़ा मुझको है सही
गरीब ये घराने है मन के इस बागीचे में अब अश्कों के फव्वारे है
अब तोह सारी खुशिया संगीत के हवाले है
नोटों से है नफरत भागे फिर भी हम कमाने है
हर घड़ी बदलती ज़िंदगी सारे तपते धूप की तलाश में नहीं पर रोशनी के प्यासे है
मैं समेट्टा हु यादें यहां बिखरे राहों पर ये कीचड़ से
खुदको जानकर हूं खुदपे ही नाराज़ और अलग हो चुका हूं मैं हक़ीक़त से
[Verse 5]
सरहदें है दिल की जंग मेरी जारी है
खुशियों से भागना सदा ही मेरी खामी है
पल से पल मिला हो जैसे तन से तन जुदा हो
है हर जनम ही कोठरी ना कैसे मन बुरा हो?
[Verse 6]
समय भी क्या हराएगी इस मौत को अभी
खमा-खा समझ रहा था खौफ़ को कवि
जो कि लिख रहा है पंक्तिया आखरी इस अंत की
संगीत की तपस्या फिर भी ना है मैंने भंग की
[Verse 7]
खत्म हो चुका हूं काफी बारी खिची दिल पे आरी
हो चुके है टुकड़े काफी पर फिर भी
समय भगवान है
समय का श्राप
समय आज़ाद है
Written by: Akshay Poojary
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