Krediler
COMPOSITION & LYRICS
Devansh Pratap Singh
Songwriter
PRODUCTION & ENGINEERING
pendo46
Producer
Şarkı sözleri
हर हर महादेव, मैं हूँ बैरागी
भोले तेरी वजह से हूँ
मैं प्रेमी हूँ, मैं पापी हूँ
मैं माल पीके मजे मैं हूँ
मैं नशे मैं हूँ इतना ज्यादा, की बुरे करम भी ठीक लगे
धन दौलत मैंने जो भी कमाया, वो सब मुजकों भीख लगे
कभी निर्दयी, तो कभी दयावान
कभी हूँ डरा, तो कभी भयावह
मैं मदिरा-पान का आदी हूँ
खुद से, खुद मैं, बर्बादी हूँ
मेरे कभी विचार शैतानों से और कभी विचार हैं साधु के
कभी-कभी मन शांत ये रहता, कभी-कभी बेकाबू हैं
श्रद्धा और सद्भाव रहे तो हो जाता हूँ पावन मैं
पर भोग-विलास और मदिरापान से, बन जाता हूँ रावण मैं
मांस पके जब बकरे का, हम राक्षस बन कर खाए उसे
पर बेकसूर किसी पशु की हत्या, कभी कभी ना भाए मुजे
एक शरीर हैं, दो मनुष्य, लगता मेरे भीतर रहते हैं
"विनाशकाले विपरीत बुद्धि" सब कुंडली देख के कहते हैं
एक तो हैं सीधा बड़ा, और दूसरा बहुत ही पापी हैं
मेरी हरकतों से बस पता चले,कब कौन सा मुज पर हावी हैं
मैं जानु ना कुछ भी अब तो, ये कलेश जो मुज पर आया हैं
ये उपज हैं मेरे दिमाग की, या किसी भूत-प्रेत का साया हैं
कोई ऊर्जा हैं नकारात्मक सी, महसूस करू मैं आस-पास मैं
समज मैं जीवन ना आए, तो देखता हूँ मैं आसमान मैं
विचार को अपने शुद्ध करू, बदलाव भी होते कर्मों से
अब दुनियादारी से नाता तोड़ के, आया भोले शरणों मैं
अस्तित्व मनुष्य का छोटा कितना?, सोच के मैं ये कांप दिया
फिर आंखे मूँद कर ध्यान कीया, ब्रम्हांड को मैंने नाप दिया
दिमाग मैं ज्ञान संसार का ना, पर बुद्धि को एकांत करा
मैं पढ़ता गया, मैं पढ़ता गया, मैंने बुद्धि मैं ब्रम्हांड भरा
मैं शून्य बना, मैं शांत बना
DeeVoy से मैं देवांश बना
मैं लिखता गया, मैं लिखता गया, अब कोई लगाम विचार पे ना
विचार कोई नकारात्मक सा, अब पड़ता ना मन पर भारी
अब बात करे सन्नाटे मुजसे, मेरी ही बन कर वाणी
मैं पृथ्वी हूँ, मैं अंबर हूँ, मैं पंचतत्व का हूँ ज्ञानी
मैं अग्नि हूँ, मैं वायु हूँ, मैं सब जानु अंतर्यामी
खुली हुई मैं किताब सा हूँ, मनघड़त कहानी बनाता नहीं
मैं प्रलय हूँ, मैं अभिशाप सा हूँ, अगर बरस पडू तो ठिकाना नहीं
मैं नदियों के सैलाब सा हूँ, उफान करूँ तो किनारा नहीं
मैं पढ़ तो लेता दिमाग भी हूँ, कभी आँखों से आंखे मिलाना नहीं
(दिमाग मैं ज्ञान संसार का ना, पर बुद्धि को एकांत करा)
(मैं पढ़ता गया, मैं पढ़ता गया, मैंने बुद्धि मैं ब्रम्हांड भरा)
(मैं शून्य बना, मैं शांत बना)
(DeeVoy से मैं देवांश बना)
(मैं लिखता गया, मैं लिखता गया)
अब कोई लगाम विचार पे ना
Written by: Devansh Pratap Singh

