歌词
गंगाजी से अमृत निकले
पहुंचे हरि के द्वार
बारा बरस की तृष्णा लेकर
भक्त करे इंतेज़ार
तब कुंभ लगे इस भूमि पर
करने हर बेड़ा पार
भक्तों का जमघट ऐसे लगे
हो सागर से भी विशाल
बिछड़े है लोग यहां कहते सभी
हम पा ले हरि का साथ
इस निर्मल भक्ति की गंगा में
अब तैरत रहे दिन रात
सब साधु संत यहां मिलते है
भक्ति का जागर करते है
देखो इस पावन मेले में
सब सुख की घागर भरते है
भारत भूमि पर ये कुंभ सजे
इसका हमको अभिमान है
कुंभ का आरंभ है
उत्सव का प्रारंभ है
हर हर गंगे
गंगाजी के घाट पे उमड़े
श्रद्धा की सोहम धारा
जो हर की पौड़ी में डूबा
वो पाप दुख सब हारा
हर एक अखाड़ा समझावे
जीवन का सारा सार
शिवजी की राख लगे है तन पर
क्या काल करेगा प्रहार
हर गंगे का ललकारा है
खुशियों में मन मगन हमारा है
खाली जीवन का कुंभ लाए थे
तृप्ति से भरा अब सारा है
Written by: Sumit Tambe