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इल्ज़ाम मोहब्बत का हम पर तो लगाया है
क़ुदरत की अदालत से ख़ुद को तो बरी करते
इल्ज़ाम मोहब्बत का हम पर तो लगाया है
क़ुदरत की अदालत से ख़ुद को तो बरी करते
इल्ज़ाम मोहब्बत का हम पर तो लगाया है
क़ुदरत की अदालत से ख़ुद को तो बरी करते
कि ग़ैर अदाओं से बर्बाद किया तुमने
तुम्हें पा ना सके हम, पर अफ़सोस नहीं करते
कि ग़ैर अदाओं से बर्बाद किया तुमने
तुम्हें पा ना सके हम, पर अफ़सोस नहीं करते
हाँ, प्यार किया हमने, हर बार बताया है
फ़ितरत का पता होता, इज़हार नहीं करते
इल्ज़ाम मोहब्बत का हम पर तो लगाया है
क़ुदरत की अदालत से ख़ुद को तो बरी करते
हाँ, प्यार किया हमने, हर बार बताया है
फ़ितरत का पता होता, इज़हार नहीं करते
हम मान चुके होते कि इश्क़ नहीं था वो
ना-ख़ुश थे अगर इतने, अरे, ज़ाहिर तो कभी करते
हम मान चुके होते कि इश्क़ नहीं था वो
ना-ख़ुश थे अगर इतने, ज़ाहिर तो कभी करते
हम मान चुके होते कि इश्क़ नहीं था वो
ना-ख़ुश थे अगर इतने, ज़ाहिर तो कभी करते
आँखों से ज़हर तुमने क्या ख़ूब पिलाया है
नीयत का पता होता, एक घूँट नहीं भरते
इल्ज़ाम मोहब्बत का हम पर तो लगाया है
क़ुदरत की अदालत से ख़ुद को तो बरी करते
आँखों से ज़हर तुमने क्या ख़ूब पिलाया है
नीयत का पता होता, एक घूँट नहीं भरते
कि आज ये कहने पर मजबूर किया तुमने
वर्ना हम ज़ख़्मों को बाज़ार नहीं करते
कि आज ये कहने पर मजबूर किया तुमने
वर्ना हम ज़ख़्मों को बाज़ार नहीं करते
हाँ, कि आज ये कहने पर मजबूर किया तुमने
वर्ना हम ज़ख़्मों को बाज़ार नहीं करते
ये राज़ हमारा था, दुनिया को बताया है
ऐ काश कि हम तुमको हमराज़ नहीं रखते
इल्ज़ाम मोहब्बत का हम पर तो लगाया है
क़ुदरत की अदालत से ख़ुद को तो बरी करते
ये राज़ हमारा था दुनिया को बताया है
ऐ काश कि हम तुमको हमराज़ नहीं रखते
(ख़ुद को तो बरी करते, ख़ुद को तो बरी करते...)
फ़ितरत का पता होता, इज़हार नहीं करते
आँखों से ज़हर तुमने क्या ख़ूब पिलाया है
नीयत का पता होता, एक घूँट नहीं भरते
Writer(s): Rajat Sharma
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