Lyrics

कर सकी शाम क्या है? कर सका ये जाम क्या? रोज़-रोज़ फिर रहा क्यूँ तू बे-परवाह? शोर-ओ-गुल भरा ज़माना नाम का है सब यहाँ क्या तू लेके आया? और क्या लेगा जाँ? ओ, ये तिफ़्ल-ए-बारगाह ना हो यहीं आख़री पयाम नाज़नीं, मह-जबीं ये बात दिल में सुलगती क्यूँ? हुस्न तो है गुमाँ यहाँ ये मिज़ाज, बयाँ, नार-ए-अज़ाब है क्या? मह-जबीन, हसीन, तरीन, ख़ुमार क्या? ये फ़ितूर, नासूर, नाज़ इस पे क्यूँ है, यार? हो ज़हीन ये बात, ये रात, मज़ार, यार ओ, ये तिफ़्ल-ए-बारगाह अटा हो इसे सब्र का पयाम नाज़नीं, मह-जबीं ये बात दिल में सुलगती क्यूँ? हुस्न तो है गुमाँ यहाँ
Writer(s): Khalid Ahamed, Kashif Iqbal, Parvaaz Lyrics powered by www.musixmatch.com
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