Hudební video

Akhil Redhu - Meri Tarha [Official Music Video]
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Kredity

PERFORMING ARTISTS
Akhil Redhu
Akhil Redhu
Performer
COMPOSITION & LYRICS
Akhil Redhu
Akhil Redhu
Songwriter
PRODUCTION & ENGINEERING
E-Man47
E-Man47
Producer

Texty

हर रोज़ सुबह उठता हूँ, मगर क्यूँ नींद ना आती रातों में? खाली हैं दीवारें कमरे की, और जंग लगी दरवाज़ों में हाँ, मैं हूँ जो क़ैद है मुझमें, मैं हूँ निराश जो खुद से सबको दिखाता राहें और गुमशुदा हूँ अपनी राहों में क्या मोड़ है जिसपे ठहरा हूँ? मैं कब से खुद को कह रहा हूँ कि कल से बदल दूँगा खुद को, पर रोज़ मैं खुद को सह रहा हूँ मैं हारा हूँ, जो टूट गया गर्दिश में मैं वो तारा हूँ हाँ, कल से बदल दूँगा खुद को, पर रोज़ मैं खुद को सह रहा हूँ मेरी तरह क्या तुम भी खुद को ही तराशते? (तराशते) वो गुज़रे वक्त की क्या ग़लतियाँ सुधारते? (सुधारते) हाँ, महफ़िलों में अपनी खुशियाँ सारी बाँट के (बाँट के) क्या तुम भी रातें सारी तन्हा ही गुज़ारते? (गुज़ारते) हाँ, चीख़ रहा हूँ आँखों से, नरमी है मेरी इन बातों में सपने हैं मेरे, और खुद ही गला मैं घोंट रहा हूँ हाथों से अब और नहीं सहना, ये राज़ कहूँ मैं ग़ैरों से मैं खुश हूँ ज़िंदगी से, ये झूठ कहूँ घर वालों से कैसा डर मेरे अंदर? थर-थर काँप रही मेरी नस-नस बंजर ख़्वाब लगें अब हर-दम, अब बस ताने कसें सब हँस-हँस हाँ, मैंने जो किए वादे हैं, अब तक वो सभी आधे हैं नज़रें ही झुका लेता हूँ, अपने जो नज़र आते हैं महलों के संगमरमर पे मैंने कंगन टूटते देखे हैं और छोटी चार-दीवारों में माँ-बाप वो हँसते देखे हैं तो क्या है क़ामयाबी? क्या है ज़िंदगानी? राहें चुनूँ मैं कैसी? सवाल मुझ पे भारी मैं आसमाँ में राहतें क्यूँ ढूँढता हूँ बेवजह? हैं रंजिशें मेरी दुआ, है बेख़बर मेरा खुदा जितनी भी शिकायत है, ये खुद नादिर की कमी है (कमी है) जैसी भी ये आस है, बस मेहनत के ही रंग ढली है (ढली है) चादर जो ओढ़ के सोया, जग से कहाँ वाक़िफ़ है (वाक़िफ़ है) ठहरा हूँ आज में ही, मुझे कल की भी कुछ तो खलिश है (खलिश है) हाँ, माना दर्द है, अभी मैं कुछ बना नहीं शायद मैं सपनों के लिए कभी लड़ा नहीं गिर जाएगा वो ख़्वाहिशों का घर मुझ पे ही अगर मैं आज अपने बिस्तर से उठा नहीं कोशिश करूँगा बस, कल से बेहतर बन सकूँ अगर फ़िसल गया तो खुद ही मैं सँभल सकूँ गँवाऊँ वक्त ना वो बीती बातें सोचकर कभी रुकूँ ना, चाहे धीमे ही क़दम चलूँ मेरी तरह क्या तुम भी खुद को ही तराशते? (तराशते) वो गुज़रे वक्त की क्या ग़लतियाँ सुधारते? (सुधारते) हाँ, महफ़िलों में अपनी खुशियाँ सारी बाँट के (बाँट के) क्या तुम भी रातें सारी तन्हा ही गुज़ारते? (गुज़ारते)
Writer(s): Akhil Redhu Lyrics powered by www.musixmatch.com
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