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ज़िंदगी, ऐ ज़िंदगी
ग़म ना दे, ऐ ज़िंदगी
ना जला हाथों को यूँ
छूने दे कोई ख़ुशी
क़िस्मत ने यूँ छोड़ा हमें
शीशा बना के तोड़ा हमें
ज़ख़्मों से हैं साँसें भरी
ज़ख़्मों को थोड़ा सीने दे ना
जीने दे ना, जीने दे ना
ज़िंदगी, तू जीने दे ना
जीने दे ना, जीने दे ना
ज़िंदगी, तू जीने दे ना
पल-पल हर एक पल सहमा है क्यूँ?
हर लम्हा क्यूँ है डरा?
चाँद आसमान पे लगता है यूँ
ख़ंजर पे दिल है धरा
पल-पल हर एक पल सहमा है क्यूँ?
हर लम्हा क्यूँ है डरा?
चाँद आसमान पे लगता है यूँ
ख़ंजर पे दिल है धरा
क़ातिल सी क्यूँ हर रात है?
पत्थर लिए क्यूँ हर हाथ है?
ज़ख़्मों से हैं साँसें भरी
ज़ख़्मों को थोड़ा सीने दे ना
जीने दे ना, जीने दे ना
ज़िंदगी, तू जीने दे ना
जीने दे ना, जीने दे ना
ज़िंदगी, तू जीने दे ना
शिकवा करें हम ग़ैरों से क्या?
ख़ुद से हुए अजनबी
चलने को आगे रस्ता नहीं
लाई कहाँ ज़िंदगी?
शिकवा करें हम ग़ैरों से क्या?
ख़ुद से हुए अजनबी
चलने को आगे रस्ता नहीं
लाई कहाँ ज़िंदगी?
आँखें तो हैं, सपना नहीं
इस भीड़ में कोई अपना नहीं
ज़ख़्मों से हैं साँसें भरी
ज़ख़्मों को थोड़ा सीने दे ना
जीने दे ना, जीने दे ना
ज़िंदगी, तू जीने दे ना
जीने दे ना, जीने दे ना
ज़िंदगी, तू जीने दे ना
Writer(s): Shakeel Azmi
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