Listen to Tum To Thehre Pardesi by Altaf Raja

Tum To Thehre Pardesi

Altaf Raja

Indian

Lyrics

तुम तो ठहरे परदेसी तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे (तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे) (तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे) तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे (तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे) तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे सुबह पहली, सुबह पहली... सुबह पहली गाड़ी से घर को लौट जाओगे (सुबह पहली गाड़ी से घर को लौट जाओगे) तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी (जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी) खिंचे-खिंचे हुए रहते हो, क्यूँ? खिंचे-खिंचे हुए रहते हो, ध्यान किसका है? ज़रा बताओ तो ये इम्तिहान किसका है? हमें भुला दो, मगर ये तो याद ही होगा हमें भुला दो, मगर ये तो याद ही होगा नई सड़क पे पुराना मकान किसका है (जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी) जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी आँसुओं की, आँसुओं की... आँसुओं की बारिश में ए तुम भी भीग जाओगे (आँसुओं की बारिश में तुम भी भीग जाओगे) तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे ग़म की धूप में दिल की हसरतें ना जल जाएँ (ग़म की धूप में दिल की हसरतें ना जल जाएँ) तुझ को, ए तुझ को देखेंगे सितारे तो ज़िया माँगेंगे तुझ को देखेंगे सितारे तो ज़िया माँगेंगे और प्यासे तेरी ज़ुल्फ़ों से घटा माँगेंगे अपने काँधे से दुपट्टा ना सरकने देना वरना बूढ़े भी जवानी की दुआ माँगेंगे, ईमान से (ग़म की धूप में दिल की हसरतें ना जल जाएँ) ग़म की धूप में दिल की हसरतें ना जल जाएँ गेसुओं के, गेसुओं के... गेसुओं के साए में कब हमें सुलाओगे? (गेसुओं के साए में कब हमें सुलाओगे?) तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे मुझको क़त्ल कर डालो शौक़ से, मगर सोचो (मुझको क़त्ल कर डालो शौक़ से, मगर सोचो) इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन? अरे, हम भी चले गए तो मोहब्बत करेगा कौन? इस घर की देख-भाल को वीरानियाँ तो हों इस घर की देख-भाल को वीरानियाँ तो हों जाले हटा दिए तो हिफ़ाज़त करेगा कौन? (मुझको क़त्ल कर डालो शौक़ से, मगर सोचो) मुझको क़त्ल कर डालो शौक़ से, मगर सोचो मेरे बाद, मेरे बाद... मेरे बाद तुम किस पर ये बिजलियाँ गिराओगे? (मेरे बाद तुम किस पर बिजलियाँ गिराओगे?) तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे यूँ तो ज़िंदगी अपनी मय-कदे में गुज़री है (यूँ तो ज़िंदगी अपनी मय-कदे में गुज़री है) अश्कों में हुस्न-ओ-रंग समोता रहा हूँ मैं अश्कों में हुस्न-ओ-रंग समोता रहा हूँ मैं आँचल किसी का थाम के रोता रहा हूँ मैं निखरा है जा के अब कहीं चेहरा शऊर का निखरा है जा के अब कहीं चेहरा शऊर का बरसों इसे शराब से धोता रहा हूँ मैं (यूँ तो ज़िंदगी अपनी मय-कदे में गुज़री है) बहकी हुई बहार ने पीना सिखा दिया बदमस्त बर्ग-ओ-बार ने पीना सिखा दिया पीता हूँ इस ग़रज़ से कि जीना है चार दिन पीता हूँ इस ग़रज़ से कि जीना है चार दिन मरने के इंतज़ार ने पीना सीखा दिया (यूँ तो ज़िंदगी अपनी मय-कदे में गुज़री है) यूँ तो ज़िंदगी अपनी मय-कदे में गुज़री है इन नशीली, इन नशीली... इन नशीली आँखों से अरे, कब हमें पिलाओगे? (इन नशीली आँखों से कब हमें पिलाओगे?) तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे क्या करोगे तुम आख़िर कब्र पर मेरी आकर? (क्या करोगे तुम आख़िर कब्र पर मेरी आकर?) क्या करोगे तुम आख़िर कब्र पर मेरी आकर, क्योंकि जब तुम से इत्तफ़ाक़न... जब तुम से इत्तफ़ाक़न मेरी नज़र मिली थी अब याद आ रहा है, शायद वो जनवरी थी तुम यूँ मिली दुबारा फिर माह-ए-फ़रवरी में जैसे कि हमसफ़र हो तुम राह-ए-ज़िंदगी में कितना हसीं ज़माना आया था मार्च लेकर राह-ए-वफ़ा पे थी तुम वादों की torch लेकर बाँधा जो अहद-ए-उल्फ़त, अप्रैल चल रहा था दुनिया बदल रही थी, मौसम बदल रहा था लेकिन मई जब आई, जलने लगा ज़माना हर शख़्स की ज़बाँ पर था बस यही फ़साना दुनिया के डर से तुमने बदली थी जब निगाहें था जून का महीना, लब पे थी गर्म आहें जुलाई में जो तुमने की बातचीत कुछ कम थे आसमाँ पे बादल और मेरी आँखें पुर-नम माह-ए-अगस्त में जब बरसात हो रही थी बस आँसुओं की बारिश दिन-रात हो रही थी कुछ याद आ रहा है, वो माह था सितंबर भेजा था तुमने मुझको तर्क़-ए-वफ़ा का letter तुम ग़ैर हो रही थी, अक्टूबर आ गया था दुनिया बदल चुकी थी, मौसम बदल चुका था जब आ गया नवंबर, ऐसी भी रात आई मुझसे तुम्हें छुड़ाने सजकर बारात आई बेक़ैफ़ था दिसंबर, जज़्बात मर चुके थे मौसम था सर्द उसमें, अरमाँ बिखर चुके थे लेकिन ये क्या बताऊँ, अब हाल दूसरा है (लेकिन ये क्या बताऊँ, अब हाल दूसरा है) (लेकिन ये क्या बताऊँ, अब हाल दूसरा है) लेकिन ये क्या बताऊँ, अब हाल दूसरा है अरे, वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है (वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है) (वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है) क्या करोगे तुम आख़िर... क्या करोगे तुम आख़िर कब्र पर मेरी आकर? थोड़ी देर, थोड़ी देर... थोड़ी देर रो लोगे और भूल जाओगे (थोड़ी देर रो लोगे और भूल जाओगे) (थोड़ी देर रो लोगे और भूल जाओगे) तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे (तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे) सुबह पहली गाड़ी से घर को लौट जाओगे (सुबह पहली गाड़ी से घर को लौट जाओगे) (सुबह पहली गाड़ी से घर को लौट जाओगे)
Writer(s): Zaheer Alam, Mohd. Shafi Niyazi Lyrics powered by www.musixmatch.com
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